1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत में कम हुआ विस्थापन, दुनिया में बढ़ा

चारु कार्तिकेय
१५ मई २०२४

एक नई वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में भारत में करीब पांच लाख लोग विस्थापित हुए, जबकि 2022 में ऐसे लोगों की संख्या करीब 25 लाख थी. लेकिन भारत में आंतरिक विस्थापन के मुख्य कारण कौन से थे?

https://p.dw.com/p/4frST
मणिपुर
मणिपुर के चुड़ाचांदपुर में एक शिविर में शरण लेते कुकी समुदाय के शरणार्थीतस्वीर: Murali Krishnan/DW

रिपोर्ट जिनेवा-स्थित अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) ने बनाई है. कम होने के बावजूद विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या काफी ज्यादा है और देश के कई इलाकों में फैली हुई है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी इन घटनाओं से अछूती नहीं है.

आईडीएमसी के मुताबिक पूरे भारत में सिर्फ बाढ़ की वजह से ही 3,52,000 लोग विस्थापित हुए. बाढ़ की वजह से सबसे ज्यादा विस्थापन असम में हुआ, जहां जून, 2023 में लगभग 91,000 लोग विस्थापित हो गए. जुलाई, 2023 में दिल्ली में यमुना नदी में बाढ़ आने की वजह से करीब 27,000 लोग विस्थापित हो गए.

कहीं आपदा, कहीं हिंसा

दिल्ली को रिपोर्ट में बाढ़ से विस्थापन का हॉटस्पॉट बताया गया है. जून में बिपरजॉय चक्रवात की वजह से गुजरात और राजस्थान में बाढ़ आई, जिसकी वजह से 1,05,000 लोग विस्थापित हो गए.

 

विस्थापन सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं की वजह से ही नहीं हुआ. रिपोर्ट में मणिपुर में हिंसा की वजह से विस्थापित हुए करीब 67,000 लोगों का भी जिक्र है.

वैश्विक स्तर पर आपदाओं की वजह से 77 लाख लोग और संघर्ष और हिंसा की वजह से करीब 68 लाख लोग विस्थापित हुए. बीते पांच सालों में संघर्ष की वजह से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या में 2.2 करोड़ का इजाफा हुआ है.

इस मामले में गाजा और सूडान में स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक रही, जिनकी वजह से 2023 के अंत तक दुनियाभर में संघर्ष की वजह से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या 7.5 करोड़ पार कर गई. यह एक नया रिकॉर्ड है.

2022 के अंत में ऐसे लोगों की संख्या 7.1 करोड़ थी. सूडान में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा (91 लाख) है. गाजा पट्टी में 2023 के अंत तक विस्थापित होने वाले फिलिस्तीनी नागरिकों की संख्या 17 लाख थी.

शांति की कोशिशों की विफलता

इन हालात पर आईडीएमसी के निदेशक एलेक्सांद्रा बिलक ने कहा, "हम पिछले दो सालों से संघर्ष और हिंसा की वजह से अपना घर छोड़ने को मजबूर लोगों की संख्या में चिंताजनक बढ़ोतरी देख रहे हैं, ऐसे इलाकों में भी जहां हालात कुछ सुधर रहे थे."

डूब गया था पूरा गांव, अब देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे लोग

उन्होंने यह भी कहा, "संघर्ष अपने पीछे जो तबाही छोड़ जाता है, वह करोड़ों लोगों को अक्सर कई सालों तक अपनी जिंदगियों को दोबारा खड़ा करने से रोक रहे हैं."

आईडीएमसी को 1998 में बनाने वाले नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के प्रमुख यान एगेलैंड ने कहा, "हमने पहले कभी अपने घरों और अपने समुदायों से जबरदस्ती दूर जाने को मजबूर किए गए इतने सारे लोग नहीं देखे."

उन्होंने आगे कहा, "यह कॉन्फ्लिक्ट प्रिवेंशन और शांति स्थापना की असफलता की असलियत दिखाता है. करोड़ों लोग सुरक्षा और सहायता से वंचित हैं और इस स्थिति को बने रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती है."

(एएफपी से जानकारी के साथ)